मंगलवार, 19 जून 2018

गुमनाम लड़की के डायरी के कुछ और इन्द्रराज –भाग-4



हमारे समय में प्यार एक जादुई यथार्थवाद है |
कितनी रातों की हवाओं में उसके आंसुओं के नमी भरती रही| खिड़कियों से रिसकर बाहर आती उसकी सिसकियों ने कितने हरे पत्तों का ह्रदय विदीर्ण किए | तब कहीं जाकर वह एक बेरहम दुनियादार, गावदी कर्तव्यनिष्ठ स्त्री बन सकी |



एक स्वपनहीन समय में भी कुछ लोग स्वप्न देखते पाए गए | उन्हें दूर किसी दंडद्वीप पर निर्वासित कर दिया गया | वहां से रोज वे लोग अपने सपने को डोंगियों में रखकर अपने देश की दिशा में तैराते रहते | कुछ सपने रास्ते में तूफान के शिकार होते रहे | पर जो गन्तव्य तक पहुँचते रहे, वे खतरनाक ढंग से पूरे देश में फैलते रहे | जोखिम से बचने वाले लोगों ने सपने देखना तो दूर,उनके बारे में सोचना तक छोड़ दिया | वे तमाम सुख-संतोष-आनन्द देनेवाली चीजें, प्रतिष्ठा, ख्याति आदि के बीच जीते रहे | उनके पास खोने के लिए बहुत सारी चीजें थीं पर पाने को कुछ भी नहीं था क्योंकि वे अपने सपने काफी पहले खो चुके थे, और धीरे-धीरे मनुष्यता भी |
प्यार-
मैं सागर-तट पर लहरों के एकदम निकट, ताड़ वृक्ष के खोखल से एक डोंगी बनाती हूँ, उसके मुहं पर एक कड़ी ठोकती हूँ, उसमें रस्सी बांधती हूँ और फिर डोंगी को खींचकर लहरों से दूर ले जाती हूँ | डोंगी रेत पर गहरा निशान छोड़ जाती है | फिर मैं पूरनमासी तक इन्तजार करती हूँ | तब समुद्र चिंघाड़ता हुआ आता है | और रेत पर डोंगी के बनाए हुए रास्ते से  होकर उसके पास आ  जता है | फिर आश्चर्यजनक तरीके से अपने सीमान्तों को आगे बढ़ाकर वहीं रह जाता है | अगली अमावस पर फिर मैं डोंगी को रेत पर खींचकर पीछे ले जाती हूँ | फिर पूरनमासी की रात समुद्र डोंगी की बनाई राह से उसतक वापस आ पहुंचता है | इसतरह यह सिलसिला चलता रहता है | इस तरह समुद्र एक दिन पास के जंगल तक पहुँच जाएगा, पेड़ों और लताओं के जड़ तक | उस दिन मैं अपनी डोंगी लेकर समुद्र में निकल पडूँगी और अपनी मृत्यु की और बढती चली जाउंगी |



गुमनाम लड़की के डायरी में दर्ज कुछ और नोट्स और इम्प्रेसंश


-अल्बम जिन्दगी का सही पता नहीं बताते |
-डायरी इतिहास नहीं होती| उसमें सबकुछ वस्तुगत नहीं होता |
-जो सपने अपनी मौत मरते है, उनकी लाशें नहीं मिलती, अपनी मौत मरनेवाले परिंदों की तरह |
-खूबसुरती में यकीन करने के लिए चीजों को खुबसूरत बनाने का हुनर आना चाहिए |
-ताबूतसाज के दूकान में एक पर एक कई ताबूत रखे थे | वे किसी बहुमंजिली इमारत जैसे लग रहा थे  |
-रोमांसवाद था मार्क्सवाद का पूर्वज | एक बार मैं पूर्वजों को खोजने अतीत में चली गई | जहाँ सुंदर शिलालेखों वाले कब्रों से भरा एक कब्रिस्तान था | बड़ी मुश्किल से वहां से निकलकर वापस आना हुआ |
-मैं तुच्छता से भरी अंधेरी दुनिया से आई हूँ | इसलिय तुच्छता से सिर्फ नफरत ही नहीं करती, उसके बारे में सोचती भी हूँ |
-दूसरों के बनाए पुल से नदी पार करने के बजाए मैं आदिम औजारों से अपनी डोंगी खुद बनाने की कोशिश करती रही और तरह-तरह से लांछित और कलंकित होती रही ,धिक्कारी और फटकारी जाती रही, उपहास का पात्र बनती रही | पुरुषों ने शराफत की हिंसा का सहारा लिया| पराजित स्त्रियों ने भीषण इर्ष्या की |



-कई बुद्धिजीवी मिले , उन्होंने कई दार्शनिक बातें की, कविता के बारे में कई अच्छी बातें की और कई बार शालीन हंसी हंसे | उनकी हंसी कांच के गिलास में भरे पानी में पड़े नकली बत्तीसी जैसी थी | मेरा ख्याल है, ये बुद्धजीवी रात को अपने गुप्त अड्डे पर लौटते हैं और जीवितों का चोला उतारकर प्रेतलोक में चले जाते हैं |
-पुरुष जब पौरुष की श्रेष्ठता का प्रदर्शन करता है, वह स्त्री को बेवफाई के लिए उकसाता है |
-बुर्जुआ समाज में विशिष्ट व्यक्ति प्रतिशोधी, आत्मग्रस्त, और हुकुमती जहनियत के होते हैं | पराजय या पीछे छुटना उन्हें असहनीय होता है | शीर्ष तक पहुचने के लिए वे कुछ भी, कोई अमानवीय से अमानवीय कृत तक करने को तैयार रहते हैं |
-उस अनजान शहर में न जाने कितने वर्षों तक भटकती रही | जब वापस लौटने का घड़ी आया तो लाख खोजने पर भी वह अमानती समानघर नहीं मिला जहाँ अपनी सारी चीजें रखकर मैं उस शहर की सडकों पर निकल पड़ी थी | मैं उस शहर से वापस आ गई थी लेकिन मेरी भुत सारी चीजें वहीं छुट गई थी | चींजे शायद इन्तजार नहीं करती, लेकिन उनसे जुड़ी आपकी ढेरों यादें हो तो तो जिन्दगी भर उनकी यादें आती ही रहती हैं |
क्रमश:
        

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