वह,
उष्मा है,
,
ऊर्जा है,
,
प्रकृति
है,
क्योंकि
वही तो,
आधी
दुनियाँ,
और
पूरी
स्त्री है |
प्रतिभा पैदा नहीं होती प्रतिभा बनाई जाती है | अगर आपको सारा आकाश चाहिए तो
आपके हौसले बुलंद होने चाहिए | आंधी तूफान से टकराने का जज्बा होना चाहिए , सपने
आपके मुट्ठी में कैद होने चाहिए | कुछ ऐसे ही बुलंद जज्बे की कहानी है हैदराबाद की
डाक्टर सुनंदा |
डाक्टर सुनंदा
का जन्म कर्नाटक के धारवाड़ के आसपास सिरसिंगी नामक गाँव में हुआ | गाँव की सोंधी मिट्टी
तथा नानी के छत्रछाया में इनका बचपन बीता | इनका बचपन सामान्य बच्चों जैसा ही था, कभी-कभी
तो वे स्वयं मजदूरों के साथ खेतों में काम में लग जाती थीं, काम करते हुए उनसे
किस्से-कहानियाँ सुना करती थीं | इनका
बचपन यह दर्शाता है की यह बचपन से ही मेहनतशील प्रवृति की थीं | सुनंदा का परिवार लड़कियों
के लिए न तो उदारवादी विचारधारा का परिचायक था और न ही संकुचित मानसिकता का पोषक |
यहाँ यह कहना उचित होगा की इनका परिवार परम्पराओं तथा वर्जनाओं को ढोनेवाला परिवार
था | परिवार ने इन्हें घर से बाहर घुमने
की आजादी नहीं दी वहीं इनके भाइयों पर कोई रोक-टोक नहीं था | सुनंदा को यह बात नागवार गुजरती थी और वे अपने
परिवार से तथा बड़े भाई से लड़ पड़ती थीं | इससे एक बात तो साफ होता है कि सुनंदा
लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) के खिलाफ थीं | आठवीं कक्षा में इनके माता-पिता ने
इन्हें पहली साइकिल दिलवाई | यह सुनंदा के जीत की पहली सीढ़ी थी | मानो इस साइकिल
ने सुनंदा की शक्ति को गति प्रदान कर दी सुनंदा ने पीछे पलटकर नहीं देखा | आप गाँव
की पहली ऐसी लड़की थीं जिसने लूना चलाना सीखा | “कहते हैं न पूत का लक्षण पालना में
ही दिख जाता है” हालांकि यह कहावत मर्दवादी मानसिकता का द्योतक है | सुनंदा के लिए
यह कहना उचित होगा कि “पुत्री के लक्षण
पालने में ही दिख जाते हैं”| इन्हीं दिनों इनका रुझान handicraft के तरफ बढ़ा |
इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने ग्रेजुएशन गृहविज्ञान (home science)
से किया |
1993 में
सुनंदा जब M.Sc कर रही थीं उसी दौरान इनकी शादी हो गयी | सुनंदा ने 1994 पोस्टग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की
1995 में बेटा प्रतीक का जन्म हुआ | 1996 में इन्होंने AICRP नामक NGO ज्वाइन किया
| यहाँ आपकी पहली तनख्वाह 1500/- थी | साथ ही आपने नेचुरल राईस (NATURAL RICE ) के लिए भी काम करना शुरू किया |
आपकी इस उपलब्धि के लिए ICAR ने 2001 में आपको राष्टीय पुरस्कार से सम्मानित किया |
सुनंदा इसका श्रेय अपनी मार्गदर्शिका (mentor) डाक्टर गीता महाले को देती हैं |
डाक्टर गीता महाले उस समय धारवाड़ कर्नाटक में एग्रीकल्चर विभाग में प्रोफेसर थीं |
सुनंदा ने मन में ठान लिया था की इन्हें अपनी एक अलग पहचान बनानी है | वर्ष 2004
में सुनंदा का चयन UNICEF के ICDS कार्यक्रम के अंतर्गत WOMEN AND CHILD DEVLOPMENT विभाग में बतौर सुपरवाईजर पद के लिए
हुआ | हालांकि इनकी यह नियुकित अस्थायी probationary थी | सुनंदा स्वभाव के विषय
में पाठकों को यहाँ यह बता देना उचित होगा कि बचपन से ही इन्हें ईमानदारी, सच्चाई तथा
निर्भीकता बहुत पसंद था | दुर्भाग्यवश यहाँ का वातावरण बेईमान तथा बीमार मानसिकता
वाले लोगों से भरा पड़ा हुआ था | सुनंदा का मन इन सबसे काफी आहत हुआ | लेकिन नियति
को कुछ और ही मंजूर था | इधर परिस्थितियां भी कुछ विपरीत बन रही थी साथ ही पति का
तबादला एक शहर से दूसरे शहर होने के कारण बच्चों की शिक्षा-दीक्षा बाधित हो रही थी
| जब सुनंदा की नौकरी स्थायी होने वाली थी तब इन्होंने परिवार को प्राथमिकता देते
हुए दुखी मन से नौकरी से इस्तीफा देने का मन बना लिया | जब इस विषय पर इन्होंने
अपने पति तथा पिता से चर्चा की तो दोनों ने कहा जो आप उचित समझे करें | किन्तु पिता
यह चाहते थे की आप परिवार को प्राथमिकता दें | पिता के एक पारिवारिक मित्र ने
उन्हें इस बात के लिए काफी भला-बुरा कहा | दुखी मन से आप अपने दो बच्चों तथा दो सूटकेस
के साथ हैदराबाद आ गई | बच्चे छोटे थे ये समय काफी कठिन था आपके लिए भाषाई समस्या
से जूझना पड़ा आपको तेलुगू तथा हिन्दी दोनों ही भाषा आपको नहीं आती थी | फिर आपने
तेलुगू का अध्ययन किया | और आपके बच्चे तेलुगू में अपने कक्षाओं में अव्वल आने लगे
| इसी दौरान आप पार्ट टाइम नौकरी भी करती रही | यहाँ आपको लोकल तथा नॉन लोकल की
समस्याओं से भी जूझना पड़ा | इन सबसे आपका मनोबल काफी हद तक बढ़ा | इसी दौरान TISCO
से आपने मैन्युअल तथा कंप्यूटर के द्वारा textile
designe तथा weaver के section का ट्रेनिंग लिया | पुनः आपने textile के क्षेत्र
में डाक्टरेट करने का निर्णय लिया | पिता आपके इस फैसले से काफी खुश थे | लेकिन
माताजी काफी नाराज हुई | उन्होंने आपसे कहा क्यों सबको मुसीबत में डाल रही हो ?
बेटा ने हंसते हुए कहा हमेशा मुझे आप पढो-पढो बोलते हो न जब आप खुद पढोगे तो आपको
पता चलेगा की पढ़ाई कितनी मुश्किल है इसलिए आप पढ़ो | घर का सारा काम खत्म करने के
बाद आप रात में बैठकर शोधप्रबंध (thesis) लिखती थीं |
कहतें हैं न अगर आप नेक काम करोगे तो राह में रोड़े तो
आएँगे ही | यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ | विश्वविद्यालय ने अंदुरुनी राजनीति के वजह से
आपको शोध कार्य के लिए भत्ता (stipen) देने से मना कर दिया | लेकिन सुनंदा कहाँ
रुकने वाली थी | आपके पति ने आपके शोधकार्य (research work) का खर्चा वहन किया और
आपका शोधकार्य निर्विघ्न चलता रहा | लेकिन ईश्वर को तो कुछ और ही मंजूर था इसी
दौरान आपके ससुर का स्वर्गवास हो गया | सुनंदा को यह कमी हमेशा खलती है की आज उसके
ससुर ज़िंदा होते तो उसकी कामयाबी पर सबसे ज्यादा खुश होते गौरव महसूस करते | मानद डाक्टरेट
की उपाधी आज आपके हाथ में है | आप अपने गाँव की पहली ऐसी महिला हैं जिसने शिक्षा
के क्षेत्र में डाक्टरेट की उपाधि हासिल की | हैंडलूम के क्षेत्र में आप गोल्लबामा
with natural die पर आप काम कर रही हैं | आपका पहली प्रदर्शनी (exhibition) people
plaza में हुआ | मुख्यमंत्री के सुपुत्र K.T.R जो की स्वयं मंत्री हैं ने आपके काम
की तारीफ की | आपके बुनकरों ने और कठिन मेहनत करना शुरू किया | इस साल 7 अगस्त
आपके लिए यादगार दिन था आपके मार्गदर्शिका (mentor) ने आपके फाइव कलेक्शन को देखा
और आपके काम की काफी सराहना की | आज आपके पास अपना चार लूम है और पुरे जोश के साथ
आप और आपके बुनकर काम कर रहें हैं | आपका मानना है की जो कुछ भी होता है वह आपके
अच्छे के लिए ही होता है | आपकी अभिरुचि समाज सेवा के क्षेत्र में भी है आप
महिलाओं का समूह बनाना चाहती हैं तथा बुनकरों के एक गाँव को गोद लेना चाहती हैं | ईश्वर आपके इस नेक काम में सफलता प्रदान करें |
आप यशस्वी हों समस्त हिन्दी जगत की ओर से आपको अनंत शुभकामनाएं |
डा. अर्पणा दीप्ति
डा. अर्पणा दीप्ति