मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

सुनंदा की कहानी- डॉक्टर सुनंदा की जुबानी


वह,

उष्मा है,
,
ऊर्जा है,
,
प्रकृति है,

क्योंकि

वही तो,

आधी दुनियाँ,

और

पूरी स्त्री है |

प्रतिभा पैदा नहीं होती प्रतिभा बनाई जाती है | अगर आपको सारा आकाश चाहिए तो आपके हौसले बुलंद होने चाहिए | आंधी तूफान से टकराने का जज्बा होना चाहिए , सपने आपके मुट्ठी में कैद होने चाहिए | कुछ ऐसे ही बुलंद जज्बे की कहानी है हैदराबाद की डाक्टर सुनंदा |
 डाक्टर सुनंदा का जन्म कर्नाटक के धारवाड़ के आसपास सिरसिंगी नामक गाँव में हुआ | गाँव की सोंधी मिट्टी तथा नानी के छत्रछाया में इनका बचपन बीता | इनका बचपन सामान्य बच्चों जैसा ही था, कभी-कभी तो वे स्वयं मजदूरों के साथ खेतों में काम में लग जाती थीं, काम करते हुए उनसे किस्से-कहानियाँ सुना  करती थीं | इनका बचपन यह दर्शाता है की यह बचपन से ही मेहनतशील प्रवृति की थीं | सुनंदा का परिवार लड़कियों के लिए न तो उदारवादी विचारधारा का परिचायक था और न ही संकुचित मानसिकता का पोषक | यहाँ यह कहना उचित होगा की इनका परिवार परम्पराओं तथा वर्जनाओं को ढोनेवाला परिवार था |  परिवार ने इन्हें घर से बाहर घुमने की आजादी नहीं दी वहीं इनके भाइयों पर कोई रोक-टोक नहीं था |  सुनंदा को यह बात नागवार गुजरती थी और वे अपने परिवार से तथा बड़े भाई से लड़ पड़ती थीं | इससे एक बात तो साफ होता है कि सुनंदा लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) के खिलाफ थीं | आठवीं कक्षा में इनके माता-पिता ने इन्हें पहली साइकिल दिलवाई | यह सुनंदा के जीत की पहली सीढ़ी थी | मानो इस साइकिल ने सुनंदा की शक्ति को गति प्रदान कर दी सुनंदा ने पीछे पलटकर नहीं देखा | आप गाँव की पहली ऐसी लड़की थीं जिसने लूना चलाना सीखा | “कहते हैं न पूत का लक्षण पालना में ही दिख जाता है” हालांकि यह कहावत मर्दवादी मानसिकता का द्योतक है | सुनंदा के लिए यह कहना उचित होगा कि  “पुत्री के लक्षण पालने में ही दिख जाते हैं”| इन्हीं दिनों इनका रुझान handicraft के तरफ बढ़ा | इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने ग्रेजुएशन गृहविज्ञान (home science) से किया |
  1993 में सुनंदा जब M.Sc कर रही थीं उसी दौरान इनकी शादी हो गयी | सुनंदा ने 1994 पोस्टग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की 1995 में बेटा प्रतीक का जन्म हुआ | 1996 में इन्होंने AICRP नामक NGO ज्वाइन किया | यहाँ आपकी पहली तनख्वाह 1500/- थी | साथ ही आपने नेचुरल राईस (NATURAL RICE ) के लिए भी काम करना शुरू किया | आपकी इस उपलब्धि के लिए ICAR ने 2001 में आपको राष्टीय पुरस्कार से सम्मानित किया | सुनंदा इसका श्रेय अपनी मार्गदर्शिका (mentor) डाक्टर गीता महाले को देती हैं | डाक्टर गीता महाले उस समय धारवाड़ कर्नाटक में एग्रीकल्चर विभाग में प्रोफेसर थीं | सुनंदा ने मन में ठान लिया था की इन्हें अपनी एक अलग पहचान बनानी है | वर्ष 2004 में सुनंदा का चयन UNICEF के ICDS कार्यक्रम के अंतर्गत WOMEN AND CHILD  DEVLOPMENT विभाग में बतौर सुपरवाईजर पद के लिए हुआ | हालांकि इनकी यह नियुकित अस्थायी probationary थी | सुनंदा स्वभाव के विषय में पाठकों को यहाँ यह बता देना उचित होगा कि बचपन से ही इन्हें ईमानदारी, सच्चाई तथा निर्भीकता बहुत पसंद था | दुर्भाग्यवश यहाँ का वातावरण बेईमान तथा बीमार मानसिकता वाले लोगों से भरा पड़ा हुआ था | सुनंदा का मन इन सबसे काफी आहत हुआ | लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था | इधर परिस्थितियां भी कुछ विपरीत बन रही थी साथ ही पति का तबादला एक शहर से दूसरे शहर होने के कारण बच्चों की शिक्षा-दीक्षा बाधित हो रही थी | जब सुनंदा की नौकरी स्थायी होने वाली थी तब इन्होंने परिवार को प्राथमिकता देते हुए दुखी मन से नौकरी से इस्तीफा देने का मन बना लिया | जब इस विषय पर इन्होंने अपने पति तथा पिता से चर्चा की तो दोनों ने कहा जो आप उचित समझे करें | किन्तु पिता यह चाहते थे की आप परिवार को प्राथमिकता दें | पिता के एक पारिवारिक मित्र ने उन्हें इस बात के लिए काफी भला-बुरा कहा | दुखी मन से आप अपने  दो बच्चों तथा दो सूटकेस के साथ हैदराबाद आ गई | बच्चे छोटे थे ये समय काफी कठिन था आपके लिए भाषाई समस्या से जूझना पड़ा आपको तेलुगू तथा हिन्दी दोनों ही भाषा आपको नहीं आती थी | फिर आपने तेलुगू का अध्ययन किया | और आपके बच्चे तेलुगू में अपने कक्षाओं में अव्वल आने लगे | इसी दौरान आप पार्ट टाइम नौकरी भी करती रही | यहाँ आपको लोकल तथा नॉन लोकल की समस्याओं से भी जूझना पड़ा | इन सबसे आपका मनोबल काफी हद तक बढ़ा | इसी दौरान TISCO से आपने मैन्युअल तथा कंप्यूटर के द्वारा  textile designe तथा weaver के section का ट्रेनिंग लिया | पुनः आपने textile के क्षेत्र में डाक्टरेट करने का निर्णय लिया | पिता आपके इस फैसले से काफी खुश थे | लेकिन माताजी काफी नाराज हुई | उन्होंने आपसे कहा क्यों सबको मुसीबत में डाल रही हो ? बेटा ने हंसते हुए कहा हमेशा मुझे आप पढो-पढो बोलते हो न जब आप खुद पढोगे तो आपको पता चलेगा की पढ़ाई कितनी मुश्किल है इसलिए आप पढ़ो | घर का सारा काम खत्म करने के बाद आप रात में बैठकर शोधप्रबंध (thesis) लिखती थीं |
कहतें हैं न अगर आप नेक काम करोगे तो राह में रोड़े तो आएँगे ही | यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ | विश्वविद्यालय ने अंदुरुनी राजनीति के वजह से आपको शोध कार्य के लिए भत्ता (stipen) देने से मना कर दिया | लेकिन सुनंदा कहाँ रुकने वाली थी | आपके पति ने आपके शोधकार्य (research work) का खर्चा वहन किया और आपका शोधकार्य निर्विघ्न चलता रहा | लेकिन ईश्वर को तो कुछ और ही मंजूर था इसी दौरान आपके ससुर का स्वर्गवास हो गया | सुनंदा को यह कमी हमेशा खलती है की आज उसके ससुर ज़िंदा होते तो उसकी कामयाबी पर सबसे ज्यादा खुश होते गौरव महसूस करते | मानद डाक्टरेट की उपाधी आज आपके हाथ में है | आप अपने गाँव की पहली ऐसी महिला हैं जिसने शिक्षा के क्षेत्र में डाक्टरेट की उपाधि हासिल की | हैंडलूम के क्षेत्र में आप गोल्लबामा with natural die पर आप काम कर रही हैं | आपका पहली प्रदर्शनी (exhibition) people plaza में हुआ | मुख्यमंत्री के सुपुत्र K.T.R जो की स्वयं मंत्री हैं ने आपके काम की तारीफ की | आपके बुनकरों ने और कठिन मेहनत करना शुरू किया | इस साल 7 अगस्त आपके लिए यादगार दिन था आपके मार्गदर्शिका (mentor) ने आपके फाइव कलेक्शन को देखा और आपके काम की काफी सराहना की | आज आपके पास अपना चार लूम है और पुरे जोश के साथ आप और आपके बुनकर काम कर रहें हैं | आपका मानना है की जो कुछ भी होता है वह आपके अच्छे के लिए ही होता है | आपकी अभिरुचि समाज सेवा के क्षेत्र में भी है आप महिलाओं का समूह बनाना चाहती हैं तथा बुनकरों के एक गाँव को गोद लेना चाहती हैं |  ईश्वर आपके इस नेक काम में सफलता प्रदान करें | आप यशस्वी हों समस्त हिन्दी जगत की ओर से आपको अनंत शुभकामनाएं |

 डा. अर्पणा दीप्ति

रविवार, 10 दिसंबर 2017

1.सुनो ! औरतें केवल देह नहीं होती -----

औरतें केवल देह नहीं होती 
इसी देह में इक कोख होती है 

जो तुम सबका पहला घर है 
अपने रक्त मांस से पोस कर जनमती है तुम्हे 
और तुम ईंट पत्थरों का घर बनाने के बाद 
भूल जाते हो अपना पहला प्रश्रय 
गाली देते हो उसी कोख को जहाँ ली थी तुमने पहली सांस 
तुम्हारी माँ बहनें बेटियां भी तो एक देह ही है 
ये सारी औरतें देह धरम निभाते निभाते भूल गई थी अपना अस्तित्व 
और मात्र देह बन कर रह गई थी --
चल रही थी दुनिया ये सारी सृष्टि एक भ्रम में जीते हुये 
और चलती ही रहती न जाने कब तक --
पर तुमने जगा दिया बार बार थूक कर इन्हें लज्जित कर 
औरत तुम सिर्फ एक देह हो सौ दिन की हो या सौ साल की 
आज फिर सृष्टि के बड़े आंगन में औरतों की महापंचायत जुटी 
सब ने समवेत स्वर में कहा -- 
यदि हम देह है तुम्हारे लिये तो तुम भी तो देह ही हो 
अंतर इतना है तुम कह देते हो हम कहते नहीं 
वरना तुम खड़े भी नहीं हो सकते किसी औरत के सामने -
अचानक गूंज उठा दिगदिगान्तर उनके ठहाकों से -
जिनसे प्रतिध्वनित हो रहा था बस एक ही स्वर 
यदि हम मात्र देह है तो तुम भी तो देह ही हो 
--- अर्पणा दीप्ति 

शनिवार, 9 दिसंबर 2017

पद्मावती प्रकरण बनाम स्त्री अस्मिता

आजकल स्त्री अस्मिता के नाम पर चारों तरफ हंगामा बरप्पा हुआ है | राजस्थान में भंवरी देवी के साथ बर्बर अमानुषिक व्यवहार अपराध क्या था भंवरी का बस इतना सा की उसने दो सवर्ण बच्चियों का बाल-विवाह रोकने का प्रयास किया गांव के गुर्ज्जरो ने बर्बरता की सारी सीमा लांघ दी | तब भी राजस्थान में यही सरकार थी | नेताओं ने कहा ये औरत झूठ बोल रही है........ तब ये लोग क्यों नहीं खड़े हुए भंवरी के पक्ष में, अपराधियों को दंड क्यों नहीं दिलवाया ? और कुछ न सही तो कम से कम उस घृणित बलात्कारियों के लिए एक फतवा ही जारी कर देते उनका भी ‘नाक काट देने का’ | लेकिन कुछ भी नहीं हुआ दमन किया स्त्री का और अपराधी था पुरुष |


वस्तुस्थिति बिलकुल नहीं बदली आज भी वही हो रहा है | सात सौ साल पुरानी कहानी को मुद्दा बनाकर हंगामा फैला रखा है | स्त्री की नाक काटने के लिए फतवा जारी कर दिया | वाह जज भी आप वकील भी आप और गवाह भी आप फिर सजा तो मिलेगी स्त्री को | इन्हें 15-20 साल से अपनी अस्मिता और सम्मान की लड़ाई लड़ रही स्त्रियाँ क्यों नहीं दिखाई देती जो आज तक इन्साफ की आस लगाए बैठी हुई हैं | स्त्री तो स्त्री है चाहे वह महरानी हो या दलित भंवरी देवी | मान-सम्मान तो सबका बराबर है |