शुक्रवार, 25 मई 2018

मैं क्यों लिखती हूँ ?-भाग 5




मैं साथ चलना चाहती थी !

उसे कविता पढने और सुनने का शौक है और उसकी आत्मा को संगीत का, कविता दोनों काम कर रही है | वाल्टेयर ने कहा है कि कविता आत्मा का संगीत है , तो यह भी सच है कि संगीत आत्मा का भोजन है | वो चाहती थी कि आत्मा को बेहतरीन भोजन मिले ; इसलिए तो वो बेहतरीन कविता लिखना चाहती थी | उसे कविता की खोज अनवरत रहती थी | कविता न तो रियाज से बनेगी और न पढ़ने से | रियाज से नृत्य में निखार आ सकता है; वाद्य यंत्र काबू में आ सकते हैं और अध्ययन से बौद्धिकता की सीमा बढाई जा सकती है ; लेकिन कविता या तो आएगी या नहीं आएगी | यदि आप चल सकते हैं तो नाच भी सकते हैं किन्तु कविता का सम्बन्ध आत्मा से है, यह ह्रदय का विषय है |
अर्पणा दीप्ति 


कविता की दुनिया बड़ी रहस्यमयी है ! कविता को चोरी किया जा सकता है , परन्तु लिखने की तकनीक को कैसे चोरी करोगे आप | एक कहानी मुझे याद आ रही है- “एकबार की बात है चिड़ियाँ और मधुमक्खी में दोस्ती हुई | चिड़ियाँ ने मधुमक्खी से कहा कि तुम इतना मेहनत करके शहद बनाती हो ; इंसान आता है तुम्हे खदेड़ कर भगा देता है और तुम्हारा शहद चुरा लेता है | मधुमक्खी ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा-भले ही इंसान मेरा बनाया हुआ शहद चुरा लेता है ; परन्तु वो आज तक मेरी शहद बनाने की तकनीक को नही चुरा पाया !

वैश्वीकरण और बाजारवाद के इस दौर में मौलिकता का अधोपतन हुआ है | आज भी कुछेक अनछुए गाँव बचे हुए हैं, जहाँ मौलिकता को महसूस किया जा सकता है ; छुआ जा सकता है | गाँव की सबसे खुबसूरत बात यह है कि घर की दहलीज से ही खेतों की सीमा आरम्भ होती है | खेत की सीमारेखा तय करनेवाले मेड़ के पास कुछ हिस्से घास के लिए होते हैं | वसंत के मौसम में इन्ही स्थानों पर आकाशवर्णी तथा पीले फूल खिलते हैं ; रंग-बिरंगी तितलियाँ और भंवरे फूल दर फूल सैर करते हैं | क्या मजाल फूल या तितलियों की कोई पंखुरी टूट जाए ! चिडियों की अलग दुनिया तो झींगुर भरी दोपहरी में अपना तान छेड़े हुए | पहले चिड़िया, फूलो, तितलियों के लिए लिखा फिर दोस्तों के लिए | गाँव छुटा , तालाब बिछड़े, नदियाँ बिछड़ी, दोस्त बिछड़े | इसके किस्से भी डायरी के पन्ने में दर्ज हुए | फिर इधर से नजर उधर गई तो देखा जो लिखा वह तो व्यर्थ था ! कलम तो भूख, दुःख, अन्याय और भ्रष्ट व्यवस्था आदि पर लिखने के लिए बनी हुई है, असली मुद्दे तो ये हैं | उसने मन में एक सुंदर समाज की तस्वीर गढ़ ली ; अब बेचैनी और बढ़ने लगी | उसको हमेशा इस बात की पीड़ा रहती थी कि जो छवि उसके मन में इस समाज की है वो हकीकत क्यों नही बन पा रही है ? अब उसका क्रोध विद्रोह में बदलने लगा | समय बीतता गया- तस्वीर लगभग वैसी की वैसी रह गई | उसे डायरी के पन्नों पर अपनी बात लिखने से थोड़ी राहत मिलती ; तनाव कम होता | एक रात उसकी आँखों में सुनहरे सपने आए | उस रात उसने कुछ नहीं लिखा , बस जो लिखा था उसे नष्ट कर दिया | मन हल्का हुआ नींद गहरी आई |

समय पानी की तरह बहता गया | व्यवस्था में ज्यादा बदलाब नहीं हुआ ; बस चल रहा है जैसे-कैसे | रोटी की व्यवस्था में संघर्ष की दिशा मुड़ गई | बेचैनी बराबर बनी रही | मन उदास भी रहता संगीत सुनना छूटने लगा | सुन्दर चीजें भी आकर्षित करने में असमर्थ होने लगी | पढने-लिखने का अब उसका मन नहीं करता ; मन में युद्ध चलता रहता | विचारों को किससे साझा करे ? अपनी परेशानी में किसे शामिल करे ?

एक दिन चलते-चलते उसका हाथ एक दोस्त ने धीमे से मगर मजबूत पकड़ और अद्भुत गर्माहट के साथ पकड़ा और कहा मैं तुम्हारे साथ चलना चाहता हूँ | उसे लगा कि यह साथ कभी न छुटने वाला है | आँखों में तैरते सपने एक जैसे ही थे ! अचानक आसपास तितलियों का उड़ना और फूलों का खिलना इस बात की पुष्टि कर रहे थे कि कठिन समय आसान होने वाला है | उस रात उसने कविता लिखी सुबह संगीत सुना | दिन में सूरज की रोशनी में छिपे सात रंग देखे | तब से वह पुनः अपनी अनुभूतियों को लिख रही है | हवा के लिए लिख रही है, मिट्टी के लिए लिख रही है, एक दोस्त के लिए लिख रही है ........|
     वो इसलिए भी लिखती है की बहुत सारे अनुभूतियों को व्यक्त नहीं कर पाती थी , बहुत सारी बातों को संकोचवश कह नही पाती थी | छोटी-छोटी बातों की शिकायत तो करती थी , लेकिन अपनी सम्वेदनाओं को व्यक्त नहीं कर पाती थी | इसलिए लिखती थी लिखना उसके लिए संवाद जैसा था ! जाने अनजाने में कि गई गलतियों की माफी के लिए लिखती थी | जो कुछ गलत है उसके विरोध में लिखती थी ; सच्चाई के पक्ष में भी डटकर लिखती थी | वो इसलिए भी लिखती थी ताकि सच ज़िंदा रह सके | दरअसल वह जीना चाहती थी ; अपनी यादों को संजोए रखना चाहती थी कठिन समय में मनोबल ऊँचा बनाए रखना चाहती थी |
 
अंतिम बात यह कि फिर सभी कवि क्यों नही बन जाते ? इसका सीधा उत्तर है कि सभी प्रेम भी तो नहीं करते ! प्लेटो ने ठीक कहा है – “प्रेम के स्पर्श से सभी कवि बन जाते हैं |”  

    






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