बुधवार, 23 जनवरी 2019

इन दो नैनन को मत खइयो,जिनमे पिया मिलन की आस



बाबा फरीद की ये पंक्तियाँ बचपन से सुनती आई लेकिन इनका अर्थ तब समझ में नहीं आता था | कागा यानी कि कौआ का प्रजाति कोई उससे क्यों कहता है कि “कागा सब तन खइयो,मेरा चुन-चुन खइयो मांस |/इन दो नैनन को मत खइयो,मोहे पिया मिलन की आस ||”


  लेकिन जैसे-जैसे जिन्दगी आगे बढ़ती गई और रंग दीखती गई इन पंक्तियों का अर्थ मैंने अपने स्तर पर समझने की कोशिश की | मुझे लगता है कि “कागा” यानि कि दुनिया के वे तमाम रिश्ते जो स्वार्थ और जरूरत पर टिके हैं ; जो हमेशा आप से कुछ न कुछ लेने की बात जोहते हैं-कभी भाई-बहन माँ-पिता बनकर तो कभी पति-पत्नी दोस्त या सन्तान बनकर आपको ठगते हैं | उनके मुखौटों के पीछे एक कागा ही होता है;-जो अपनी नुकीली चोंच से हमारे वजूद को, हमारे अस्तित्व को, हमारे व्यक्तित्व को हमारे स्व को निज को खाता रहता है | 

         
     हम लाख छुड़ाना चाहें खुद को वो हमें नहीं छोड़ता;-हमारे देह को हमारे तन को खाता रहता है चुन-चुनकर मांस का भक्षण करता रहता है | वो कई बार अलग-अलग रूपों में हम से जुड़ता है और धीरे-धीरे हमे समाप्त करता है |

    ये तो हुआ कागा और हम कौन है ? सिर्फ देह ? सिर्फ भोगने की वस्तु ? किसी की जरूरतों के लिए हाजिर समान की डिमांड ड्राफ्ट ?क्या है हम और पिया कौन है ? जिससे मिलने की चाह में हम ज़िंदा हैं ? कागा द्वारा सम्पूर्ण रूप से तन को खा लिए जाने का भी हमें गम नहीं ! उससे आग्रह किया जा रहा है कि “दो नैनन मत खइयो मोहे पिया मिलन की आस|” कौन है ये पिया ? यकीनन वो परमात्मा ही होगा जिसकी तलाश में ये दो नैना टकटकी लगाए है कि अब बस बहुत हुआ आ जाओ और साँसों की बंधन से देह को मुक्त करो |


  ये कागा उस विरहिणी का मालिक भी है जिसने उसे बंदिनी बनाकर रखा है और जो अपनी प्रियतम की आस में आँखों को बचाए रखने की विनती करती है | जब तक प्रियतम नहीं मिलते उसके प्राण नहीं जाएंगे | कितना दर्द है इन पंक्तियों में | देखा जाए तो इन पंक्तियों में गहरे  अर्थ भी है |मानो विरहणी कह रही हो कागा तू जी भरकर इस भौतिक देह का भोग कर ले मगर दो नैना छोड़ देना क्योंकि इसमें पिया मिलन की आस है और कागा अपना काम बखूबी करता है | अपनी जरूरत अपने अवसर और अपने सुख के लिए मांस का भक्षण किए जाता है | उसे विरहिणी के आँखों से क्या लेना-देना क्या सरोकार ? वो देह का सौदागर है हमेशा उसने अपना लाभ देखा है | किसी के आँखों में बहते दर्द नहीं देखे न ही पीर पराई देखी | इसलिए विरहणी कह उठती होगी कि –“कागा सब..........मोहे पिया मिलन की आस |
अर्पणा दीप्ति  





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