तेरी आँखों के सिवा
दुनिया में रखा क्या है ....../मेरा मरना, मेरा जीना इन्हीं पलकों के तले ......||
फैज अहमद साहब की
पहली किताब “नक्शे फरियादी” में एक नज्म है-
“मुझसे पहली सी
मुहब्बत मेरे महबूब न मांग !!” इसी नज्म में एक पंक्ति है –“तेरी आँखों के सिवा
दुनिया में रखा क्या है ?”
फैज साहब पंजाबी थे
जिन आँखों के हुस्न से उन्होंने अपनी नज्म को सजाया था वे आँखें लन्दन की थी | उस
खुबसूरत आँखों वाली का नाम था ‘एलिस कैथरीन जार्ज’ जो बाद में बेगम फैज बनकर एलिस
फैज हो गई | इन आँखों को फैज अहमद साहब ने और अच्छी नज्म का विषय बनाया-
यह धुप किनारा शाम
ढले,
मिलते हैं दोनों
वक्त जहाँ |
जब तेरी समन्दर
आँखों में ,
इस शाम का सूरज
डूबेगा ....
और राही अपना राह
लेगा |
आँखे हमेशा हर युग
में शायरों और कवियों का प्रिय विषय रही है | लिखने वालों ने अपने नए-नए अंदाज में
इन्हें अपने शब्दों से सजाया है | मशहुर गजल गायक जगजीत सिंह ने ‘इन साइट’ नाम से
एक अल्बम बनाया इसमें एक गीत है –
जीवन क्या है चलता
फिरता एक खिलौना
दो आँखों में एक से
हँसना एक से रोना है |
जो जी चाहे, वह हो
जाए, कब ऐसा होता है ?
अब तक जो होता आया
है वही होना है |
भारत से कई समन्दर
दूर इटली के शहर पालेरमू के म्यूजियम में दो आँखें ऐसी है जिसे कोई एकबार देख ले
जीवन में कभी भूल नहीं पाए | ये आँखें शायरों कवियों की आँखों की तरह किसी स्त्री
के चेहरे की नहीं अपितु प्राचीन ग्रीक देवता “जेनस” की मूर्ति की है | इस मूर्ति
की दोनों आँखों में से एक आँख मुस्कराती नजर आती है ; दूसरी बिना आंसू के रोते
दिखाई देती है | एक ही चेहरे में एक साथ रोती और मुस्कराती आँखें ! ये आँखें जीवन
का सत्य बयान करती हैं | यह भी तो सत्य है कि जीवन का सत्य जानने के लिए हर कोई
राजगद्दी त्याग कर गौतम बुद्ध तो नहीं बन सकता |
क्रमशः
अर्पणा दीप्ति
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें