शनिवार, 7 सितंबर 2013

पिता की पगड़ी

पिता की पगड़ी / कपड़े की नहीं होती है
बेटी के देह की बनी होती है। 
जहाँ जहाँ बेटी जाती है 
पिता की पगड़ी साथ जाती है। 
पगड़ी का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध मात्र बेटी से है 
बेटे को उससे कोई सहानुभूति नहीं
 न ही अन्दर से
 और न बाहर से।।

बेटा चाहे कितना ही 
काला होकर आता है, 
पगड़ी की सफेदी 
बेदाग रहती है।
वह तो बेटी है कि तिनका हिला नहीं
पगड़ी पहले मैली हो जाती है।।

इसलिए तो हर बाप अपनी बेटी से कहता है 
बेटी पगड़ी की लाज रखना,
भाई से होड़ मत करना
वह तो वंश बेल है। 
अमर बेल की तरह 
उसी से घर की शोभा है।।

बेटियां बेजुबान रहें 
इसी में वे चरित्रवान हैं। 
पगड़ी कभी नहीं फटती है 
बेटियां मिटती हैं।।

पगड़ी की सुरक्षा के लिए 
कम पड़ती हैं हजारों बेटियां। 
और यह अंतहीन सिलसिला......
चलता ही रहता है अनवरत। 
पिता सुख की नींद सोता है
बेटियाँ पगड़ी की लाज रखती हैं। 

फिर भी वे पराई कही जाती हैं
क्योंकि पहनते हैं बेटे पगड़ी का ताज,
रखती हैं बेटियाँ पगड़ी की लाज ॥





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