पुराने कागजो में मिली आज -------------
----------बरसों पहले मुझे ससुराल में
लिखी माँ की पहली चिट्ठी ------------
---------कितनी नसीहतें है इसमें
कुछ प्यार भरी धमकी भी ------------
------------ठीक से रहना ससुराल है तेरा
जोर से मत हंसना -धम धम कर के भाग दौड़ न करना
पता नहीं तुझे कब अक्ल आएगी समझती ही नहीं
हे भगवान ये पगली गुड़िया भी छुपा कर ले गई अपनी
अच्छा सुन! उसे निकाल कर खेलना मत
वरना सब तेरे बाबुजी और माँ को कहेंगे --------
कुछ तौर-तरीका ही नहीं सिखाया इसकी माँ ने ------
कोई शिकायत न आये वहाँ से समझी ?
रोज सुबह उठ कर बड़ों के पैर जरुर छूना
भूलना मत सबके पैर छूना समझ रही है न ?
तुझे समझया था -- मुझे याद आया माँ ने
विदाई के समय फुसफुसाकर कान में कहा था कुछ
फिर मुझे हंसी आ गई ---- सब याद करके
जब मैने तुनक कर कहा था क्या इस लड़के का भी
न नहीं बिलकुल नहीं छूना मुझे! नहीं करुँगी जाओ
माँ का चेहरा पीला पड़ गया, न जाने क्या करेगी ये लड़की
कोई अक्ल नहीं, सहूर भी नहीं इसे मना किया था
मत करो इसकी शादी अभी से -----
हाथ में कांपती हुई माँ की चिट्ठी का
ये पीला जर्जर कागज़ ऎसा प्रतीत हो रहा है
मानो मेरी बीमार माँ का कमजोर चेहरा हो
जो आज भी पीला पड़ जाता है मेरी चिंता में
चिट्ठी के पीले पड़े कागज़ में दो बूंद आंसूओं के निशान हैं
उन्हें छुआ वो अभी भी नम है -----
बस दो बूंद ढलक गई मेरी आँखों से --
बुदबुदा उठी ओंठो में इक हूक सी उठी कलेज़े में
माँ इस बार जल्दी आउंगी मैं -तुम्हारी गोद में सर रख कर
रोना है मुझे -- ढेर सारी बातें करनी है
और वह गुड़िया उसकी सिलाई उघर गई है
फिर भी सहेज़ रखा है तुमने बनाई थी न
इस बार आउंगी उसे फिर से सी देना
तुम सी दोगी न माँ --मै फिर से जी लुंगी
अपना अधूरा छूटा बचपन ----- !!
--------------------- DIPTI
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